Sunday, July 26, 2009

रेला...रेला.. रे..रेला..

रे...रेला.. रे ..
बस्तर( छत्तीसगढ़) के अंदरुनी गांव में अर्ध रात्रि का यह गान ऐसे माहौल का निर्माण करता है कि आप स्वंय में मंत्रमुग्ध हो जाएंगे और चल पड़ेंगे, उसी ओर जहां से यह आवाज आ रही होगी। इस स्वर में डूबकर आदमी रास्ता भी नहीं खोजता और बिना रास्ता ही उस स्थान पर पहुंच जाता है। जहां से यह आवाज आ रही होती है.. जी हां... मैं बात कर रहा हूं बस्तर के घोटूल का ...सच में घोटूल का ही ...आपको लगेगा बड़े अच्छे विषय की चर्चा छेड़ दी मैंने.. मगर अब ये बातें बस बातें ही रह गई हैं.... पता नहीं मेरे बस्तर के घोटूल को किसकी नजर लग गई है कि .. अब ये गीत गांवों में सुनाई नहीं देते .. पूछने पर बड़े खिन्न मन से गनपत नाक में उंगुली डालकर बताता हैं कि अब घोटूल बंद हो गए हैं .. घोटूल की जगह .. और उसकी झोपड़ी... किसी अबला की तरह मेरी ओर ताकते हैं ... और मैं लोगों की ओर .... यकीन मानिए दोनों लूट गए हैं कि स्थिति में ही हैं ।
बस्तर के भम्रण में आने वाले यहां कदम रखते ही इस बात को जरुर जानना चाहते हैं कि घोटूल क्या होता है .. और इसे कहां वे देख सकते हैं ... मैंने खुद बहुत बौद्धिक लोगों को आंख में चश्मा, हाथ में कापी और पेन लेकर घोटूल पर अधिक से अधिक जानकारी लेते और किसी भूख्खड़ की तरह उसके विषय में चीजों को बटोरते देखा है.. ऐसे लोगों की वापसी के बाद उनके लेख मुझे और ज्यादा प्रताडि़त करते हैं .. घोटूल की जैसी छवि आज देश और विदेश में लोगों ने फैला रखी है ..आत्मीय एवं आत्मीया.. बस्तर की संस्कृति में ऐसा कुछ भी नहीं है.. हम- आप बहुत ज्यादा सभ्य बनते हैं फिर भी अपनी ही बहन –बिटिया की आबरु से खिडवाड़ करते देखे, सुने और पढे जाते हैं .. हां या ना ..। आप मुझे एक प्रकरण बता दें कि किसी आदिवासी बालक ने बालिका के साथ दुर्व्यवहार किया हो या चिनक्का, सोमनी या किसी वन्य बाला का किसी स्थानीय युवक ने ही दुराचार कर दिया हो .. मेरी महुआ बुद्धि में ऐसा कोई डेटा संग्राहित नहीं है.. फिर सभ्यता संस्कृति की बात हम उन्हें सिखाने चले हैं, जिनसे हमें सीखना चाहिए ।
घोटूल की गलत व्याख्या ने बस्तर और यहां के लोगों को बड़ा ही व्यथित कर रखा है ।मैंने किसी भी ऐसी परंपरा को नहीं देखा है जिसके नियम और कायदे घोटूल के नियम कायदे से कड़े हो, मैंने कभी ये नहीं सुना कि घोटूल में किसी के साथ दुराचार हो गया या किसी ने एमएमएस बनाकर दूसरे घोटूल के चेलिक( घोटूल का युवा) को भेज दिया, या चेलिक ने घोटूल जा रही किसी मोटियारिन(घोटूल की युवती) के ऊपर तेजाब डाल दिया ... मैंने देश और राजधानी स्तर पर सुना है कि बस्तर के लोग भूच्च लोग हैं, भला इतना अच्छा काम वे कहां कर पाएंगे। कभी बस्तर के अधिकांश गांवों में दिखाई देना वाला घोटूल अब धीरे- धीरे बंद होते जा रहे हैं.. इन गांवों में सरकार स्कूल नहीं खोल पा रही है और खुल गए तो मास्टर जी कागजों में स्कूल चलाते रहते हैं .. ऐसे में चेलिक – मोटियारिन कहां से शिक्षित हो पाएंगे ..प्लीज, आप नाक में उंगली डालकर टाइम काट रहे गनपत को जवाब दें .. नारायणपुर और ओरछा ( अबूझमाड़) के किसी भी गांव में इस गीत की आवाज पहले जैसे सुनी जाती थी, अब रेला .. रेला ..रे ..रेला .. रे ..की ध्वनि धीरे-धीरे मंद होती जा रही है । बस्तर में गुनिया – सिरहा और बैगा की मौजूदगी बहुत है मगर ये मर्ज एबीबीएस स्तर की है। लेकिन आप किसी ऐसे फकीर का मुझे पता दें जो बस्तर के गांवों से लुप्त हो रहे घोटूल पर तरस खाकर उस पर लगी नजर उतार दें...
---- संजीव शुक्ल, रायपुर, छत्तीसगढ़

5 comments:

  1. बहुत अच्छा सर-एसे हि लिखते रहे हम रोज आपसे एक लेख चाहते हैं............आपका प्रशंसक.
    शंकर

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  2. बहुत शानदार... बस आस ये रह गई कि दरअसल घोटुल की सही परिभाषा है क्या

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  3. सर आपके मुख से बस्तर के बारे में बहुत सुना हूं....और दूर बैठकर उसके दर्शन भी कभी लगता है वहीं पहुंच गया...जैसे इसे पढ़कर...एक फिर बस्तर की सैर कर आया...।

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